उत्तम पुरुष बनना सीखो: मुनि श्री आदित्यसागर
किशनगढ़। श्रुतसंवेगी महाश्रमण मुनि आदित्यसागर ने मंगलवार को प्रातः धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि डर व्यक्ति को बांधकर रखता है और आगे बढ़ने नहीं देता। उन्होंने कहा कि जो लोग उन्नति चाहते हैं, बहुत ऊंचा उठना चाहते हैं, वे अक्सर भय के कारण पीछे रह जाते हैं। जो डर जाते हैं, वे जीत नहीं पाते, जबकि जो डटे रहते हैं, वही जीत की परिभाषा बन जाते हैं। मुनि ने बताया कि नीतिकारों के अनुसार मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं—जघन्य, मध्यम और उत्तम पुरुष। जघन्य पुरुष काम को शुरू ही नहीं करते, मध्यम पुरुष कार्य को आधा छोड़ देते हैं और उत्तम पुरुष वह होते हैं जो कार्य को पूरा करते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तम पुरुष बनना और प्रतिष्ठा को बनाए रखना कठिन कार्य है, और पुरुषार्थ की जंग में प्रारंभ से अंत तक साहस और विश्वास कायम रखना बड़ी बात है। उत्तम पुरुष अपने अनादर के भय से सदैव सतर्क रहते हैं और ऐसा व्यक्तित्व बनाकर चलने की प्रेरणा देते हैं। मुनि ने कहा कि कोई भी विद्या या कला व्यर्थ नहीं जाती, सीखने में कभी हर्ज नहीं है, और अनुभव ही सही निर्णय का मार्ग प्रशस्त करता है।
प्रवचन के दौरान मुनि आदित्यसागर ने आचार्य विरागसागर का दीक्षा दिवस होने पर उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके गुणों का गुणगान किया। इससे पूर्व सभा में चित्रअनावरण, दीपप्रज्ज्वलन, पादप्रक्षालन, शास्त्र, मंगलाचरण, सायंकालीन श्रुत–समाधान और मुनि की संगीतमय आरती की गई। कार्यक्रम में पंचायत अध्यक्ष विनोद पाटनी सहित अनेक जैन धर्मावलम्बी उपस्थित रहे।
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