नई दिल्ली। सरकार ने भारत में निर्मित और आयातित सभी मोबाइल हैंडसेट में संचार साथी ऐप को पहले से इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया है। दूरसंचार विभाग ने निर्देश दिए हैं कि यह ऐप उपयोगकर्ताओं के लिए सेटअप के समय आसानी से दिखाई दे और इसकी कार्यक्षमता बाधित न हो। सरकार का दावा है कि इसका उद्देश्य नागरिकों को नकली मोबाइल डिवाइस से बचाना, दूरसंचार संसाधनों के दुरुपयोग की रिपोर्टिंग सक्षम करना और साइबर धोखाधड़ी रोकना है। ऐप के माध्यम से लोग IMEI नंबर से हैंडसेट की प्रामाणिकता जांच सकते हैं, खोए-चोरी हुए फोन की रिपोर्ट कर सकते हैं और अपने नाम पर चल रहे कनेक्शन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हालांकि इस कदम पर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इसे "पेगासस प्लस प्लस" बताया और कहा कि यह बिग ब्रदर हमारे फ़ोन और निजी जीवन पर कब्जा करेगा। राहुल गांधी ने सदन में इस मुद्दे पर बोलने का संकेत दिया, जबकि प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे 'बिग बॉस' निगरानी का मामला बताया। सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास ने भी केंद्र सरकार पर चुटकी ली और कहा कि अगले कदम में 1.4 अरब लोगों के टखनों पर मॉनिटरिंग की जा सकती है।
इस कदम का बचाव करते हुए भाजपा सांसद शशांक मणि त्रिपाठी ने कहा कि ऐप पूरी तरह सुरक्षित है और सभी डेटा डिजिटल रूप से संरक्षित रहेंगे। उन्होंने बताया कि संचार साथी पहल नागरिकों को डिजिटल धोखाधड़ी और नकली मोबाइल उपकरणों से बचाने के लिए शुरू की गई है। ऐप से IMEI जाँच, चोरी हुए फोन की रिपोर्टिंग और अपने कनेक्शन की निगरानी जैसी सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। दूरसंचार साइबर सुरक्षा नियमों के तहत निर्माता और आयातक ऐप के सही कार्यान्वयन और सरकार के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करेंगे।
संचार साथी ऐप पर विपक्ष की चिंता निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर है, जबकि सरकार इसे साइबर सुरक्षा और नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला उपाय बता रही है।