ब्रिक्स बनाम जी-7: बदले वैश्विक समीकरणों में कौन है ज्यादा प्रासंगिक?
नई दिल्ली। दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील के रियो डि जनेरो में 6-7 जुलाई 2025 को ब्रिक्स देशों का 17वां शिखर सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाग लेंगे। इससे लगभग दो हफ्ते पहले, 16-17 जून को उत्तर अमेरिकी देश कनाडा के अल्बर्टा में जी-7 देशों की 51वीं शिखर बैठक संपन्न हुई थी। इन दोनों सम्मेलनों के स्वरूप में एक बुनियादी अंतर है—जी-7 समूह में केवल विकसित और अमीर देश शामिल हैं, जबकि ब्रिक्स विकासशील देशों का संगठन है।
इन दोनों मंचों की तुलना में यह सवाल उठता है कि 50 साल पुराने जी-7 और डेढ़ दशक पुराने ब्रिक्स (अब ब्रिक्स प्लस) में से कौन-सा संगठन आज के वैश्विक परिदृश्य का बेहतर प्रतिनिधित्व करता है और किसकी प्रासंगिकता अधिक है। हालांकि, जी-7 देश अब भी खुद को वैश्विक नेतृत्वकर्ता मानते हैं, लेकिन बदलती विश्व अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक स्थितियों के बीच इस नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं। इस संदर्भ में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अल्बर्टा सम्मेलन से पहले अचानक चले जाना भी संकेत देता है कि वे इस मंच को कितनी गंभीरता से लेते हैं।
आईएमएफ के ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक अप्रैल 2025’ के आंकड़े इस तुलना को और स्पष्ट करते हैं। आईएमएफ के अनुसार, 2025 में वैश्विक जीडीपी मौजूदा मूल्यों पर 113.8 ट्रिलियन डॉलर और क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर 206.87 ट्रिलियन डॉलर है। मौजूदा मूल्यों पर जी-7 देशों की जीडीपी 51.14 ट्रिलियन डॉलर है, जो विश्व जीडीपी का लगभग 45 प्रतिशत है। वहीं, PPP के आधार पर इन देशों की जीडीपी 58.80 ट्रिलियन डॉलर है, जो सिर्फ 28.39 प्रतिशत बनती है।
यह आंकड़े दर्शाते हैं कि अब आर्थिक प्रतिनिधित्व के लिहाज से ब्रिक्स देश जी-7 से आगे निकल चुके हैं और बदलते विश्व परिदृश्य में ब्रिक्स की भूमिका और प्रासंगिकता लगातार बढ़ती जा रही है।
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