किश्तवाड़ में बादल फटने से मची तबाही, 60 की मौत, 100 से अधिक घायल
किश्तवाड़, 14 अगस्त। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के अनुसार जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले में बादल फटने से कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज़्यादा घायल हो गए हैं। गुरुवार को किश्तवाड़ के सुदूर पहाड़ी गाँव चिसोती में बादल फटने से आई भीषण बाढ़ ने भारी तबाही मचा दी। बचाव दल को आशंका है कि मृतकों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि कई लोग अभी भी लापता हैं। जम्मू के पुलिस महानिरीक्षक बीएस टूटी ने बताया कि ज़्यादातर पीड़ित हिंदू तीर्थयात्री थे, जो मचैल माता मंदिर की यात्रा पर जा रहे थे। यह आपदा चसोती (चिसोती) में दोपहर 12 से 1 बजे के बीच आई, जब सैकड़ों श्रद्धालु वार्षिक यात्रा के लिए एकत्र हुए थे। मंदिर तक की अंतिम 8.5 किलोमीटर की यात्रा इसी गाँव से शुरू होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से बात कर स्थिति का जायजा लिया और हरसंभव मदद का भरोसा दिया।
21 शवों की हुई पहचान
अधिकारियों ने बताया कि किश्तवाड़ जिले के चशोती गांव से बरामद किए गए 60 शवों में से 21 की पहचान कर ली गई है। इस घटना में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के दो जवानों समेत कम से कम 46 लोगों की मौत हो गई। मृतकों की पहचान के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से तस्वीरें साझा की गईं, जिसके परिणामस्वरूप 21 शवों की पहचान संभव हो पाई। अब तक 160 से अधिक घायलों को मलबे से निकाला गया है, जिनमें 38 की हालत गंभीर है। ग्रामीणों ने चिनाब नदी में 10 शव तैरते देखे हैं, जिन्हें निकालने का प्रयास जारी है।
सबसे अधिक प्रभावित लंगर और बाजार
दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर आई इस आपदा में मचैल माता मंदिर यात्रा के लिए एकत्र बड़ी संख्या में श्रद्धालु चपेट में आ गए। यहां श्रद्धालुओं के लिए लगाया गया एक लंगर सबसे अधिक प्रभावित हुआ। बादल फटने से आई बाढ़ ने दुकानों, एक सुरक्षा चौकी, अस्थायी बाजार, तीन मंदिर, चार पवन चक्की, 16 मकान, सरकारी इमारतें, 30 मीटर लंबा पुल और दर्जनभर से अधिक वाहन बहा दिए।
एनडीआरएफ की टीम बचाव में जुटी
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की एक टीम शुक्रवार को चिसोती गांव पहुंची और बचाव कार्य में जुट गई। दो और टीमें रास्ते में हैं। उपायुक्त पंकज शर्मा ने बताया कि खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर नहीं उड़ पाए, इसलिए टीम सड़क मार्ग से पहुंची।
भयावह अनुभव सुनाए बचे लोग
जीवित बचे पुतुल ने बताया, "पूरा पहाड़ ढह गया, और हम समझ नहीं पाए कि क्या हुआ। मैं इसलिए नहीं दबी क्योंकि मैं चट्टान पर खड़ी थी, लेकिन अपने परिवार के कई सदस्यों को नहीं ढूंढ पा रही हूं।"
राकेश शर्मा ने कहा, "हम लंगर में प्रसाद खाकर सड़क पार करने ही वाले थे कि अचानक शोर हुआ। मलबा गिरते देखा और लोग ‘भागो-भागो’ चिल्लाने लगे। मैंने बच्चे को बचाने की कोशिश की, लेकिन मलबा मुझ पर गिरा। लकड़ी का बड़ा टुकड़ा हमारे ऊपर गिरने से हम बच गए। कम से कम 60-70 लोग अभी भी दबे हो सकते हैं। किश्तवाड़ के लोग बहुत मददगार हैं, उन्होंने कपड़े और खाना देकर सहारा दिया।"