ग्रेट निकोबार परियोजना पर राहुल और सोनिया गांधी का हमला, आदिवासियों के विस्थापन और पारिस्थितिकी तंत्र को बताया खतरा
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोमवार को ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को आदिवासियों के अधिकारों को कुचलने वाला "दुस्साहस" बताया। राहुल गांधी ने कहा कि यह परियोजना कानूनी व विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मज़ाक उड़ा रही है। उन्होंने सोशल मीडिया पर कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी का लेख साझा करते हुए कहा कि यह लेख निकोबार के लोगों और उसके नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र पर हो रहे अन्याय को उजागर करता है।
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना में ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, ऊर्जा संयंत्र और टाउनशिप बनाने की योजना है। इस पर सोनिया गांधी ने द हिंदू में प्रकाशित संपादकीय में कहा कि यह परियोजना निकोबारी और शोम्पेन जनजातियों के विस्थापन तथा द्वीप के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने सवाल उठाया कि 72,000 करोड़ रुपये का यह अनुचित व्यय न केवल प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील क्षेत्र को जोखिम में डालता है बल्कि मूल आदिवासी समुदायों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा करता है।
सोनिया गांधी ने कहा कि निकोबारी आदिवासियों के पैतृक गाँव परियोजना क्षेत्र में आते हैं, जिन्हें 2004 की सुनामी के दौरान भी विस्थापन का सामना करना पड़ा था। अब यह परियोजना उन्हें स्थायी रूप से उजाड़ देगी। शोम्पेन जनजाति के संदर्भ में उन्होंने कहा कि केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय की नीति में उनके कल्याण और अखंडता को प्राथमिकता देने की बात कही गई है, लेकिन इसके विपरीत इस परियोजना से शोम्पेन जनजातीय अभ्यारण्य का बड़ा हिस्सा गैर-अधिसूचित कर दिया गया है, जिससे उनकी जीवन-शैली और वन पारिस्थितिकी प्रणालियों को गहरी क्षति पहुँचेगी।
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि जनजातीय अधिकारों के संरक्षण के लिए स्थापित संवैधानिक और वैधानिक निकायों को इस पूरी प्रक्रिया में दरकिनार कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना से द्वीप पर बड़े पैमाने पर बाहरी आबादी और पर्यटकों का दबाव बढ़ेगा, जिससे स्थानीय समुदायों और पर्यावरण पर गहरा असर पड़ेगा।