सैयदा हमीद के बयान पर असम में सियासी भूचाल, सरमा बोले– “जिन्ना के सपने को साकार करने की कोशिश”
असम में बांग्लादेशी घुसपैठ और नागरिकता के प्रश्न पर नया विवाद खड़ा हो गया है। सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व योजना आयोग की सदस्य सैयदा हमीद के बयान कि “बांग्लादेशी भी इंसान हैं, वे यहाँ रह सकते हैं” ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इसे “जिन्ना के सपने को साकार करने की कोशिश” करार देते हुए कहा कि इस प्रकार की सोच असम की अस्मिता और जनसंख्या संरचना के लिए सीधा खतरा है। उन्होंने लाचित बरफुकन के संघर्ष का हवाला देते हुए कहा कि असम अपनी भूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए हर कीमत पर तैयार है।
असम जातीय परिषद और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने भी सैयदा हमीद की टिप्पणी को अस्वीकार्य बताया और असम आंदोलन के बलिदानों का हवाला दिया। वहीं कांग्रेस नेता देबरत सैकिया ने इस विवाद को केंद्र और राज्य सरकारों की नीतिगत विफलता से जोड़ा और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में किए वादे के मुताबिक ठोस कदम उठाए होते तो असम इस संकट से नहीं जूझ रहा होता।
असम नागरिक सम्मेलन ने स्पष्ट किया कि सैयदा हमीद के विचार व्यक्तिगत थे और संगठन “असम समझौते की पवित्रता” में विश्वास रखता है। संगठन ने 25 मार्च 1971 के बाद आए सभी बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान और निर्वासन की माँग दोहराई।
सैयदा हमीद ने असम दौरे के दौरान विवादित टिप्पणियाँ करते हुए राज्य को “फ्रेंकस्टीन जैसी खतरनाक जगह” बताया और कहा कि मुसलमानों के खिलाफ प्रतिशोध है। उन्होंने कहा कि पहले “मियां” शब्द अच्छे अर्थ में इस्तेमाल होता था लेकिन अब यह गाली बन गया है। प्रतिनिधिमंडल में हर्ष मंदर, वजाहत हबीबुल्ला, फैयाज शाहीन, प्रशांत भूषण और जवाहर सरकार भी शामिल थे, जिन्होंने खाली कराए गए मुस्लिम इलाकों का दौरा किया।
विशेषज्ञों के अनुसार यह विवाद दिखाता है कि असम में बांग्लादेशी प्रवास का प्रश्न केवल नागरिकता या विस्थापन का मुद्दा नहीं, बल्कि अस्मिता, सुरक्षा और राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है। एक ओर मानवाधिकार और मानवीय संवेदनाएँ हैं, तो दूसरी ओर ऐतिहासिक समझौते, जनसंख्या संतुलन और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा का संकल्प है।