भारत की जनसांख्यिकी में बदलाव: जन्मदर घटी, बुजुर्ग आबादी बढ़ी
भारत के महापंजीयक कार्यालय द्वारा जारी नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (SRS) 2023 की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि देश की सकल जन्म दर (CBR) 2022 के 19.1 से घटकर 2023 में 18.4 पर आ गई है। वहीं, कुल प्रजनन दर (TFR) भी दो वर्षों तक 2.0 पर स्थिर रहने के बाद 2023 में पहली बार घटकर 1.9 रह गई। इसका अर्थ है कि औसतन एक महिला अब दो से भी कम बच्चों को जन्म दे रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक CBR बिहार में 25.8 और सबसे कम तमिलनाडु में 12 दर्ज की गई। बड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिहार ने सबसे अधिक TFR 2.8 दर्ज की, जबकि दिल्ली ने सबसे कम 1.2 दर्ज की। रिपोर्ट बताती है कि 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रतिस्थापन स्तर TFR 2.1 से नीचे पहुंच चुके हैं।
देश की सकल मृत्यु दर (Crude Death Rate) 2023 में 6.4 रही, जो 2022 की तुलना में 0.4 अंक कम है। शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) में 2022 से 1 अंक की कमी आई है और 2023 में यह 25 रही। इसके बावजूद हर 40 में से एक शिशु एक वर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth – SRB) 2023 में 917 रहा। छत्तीसगढ़ (974) और केरल (971) में सबसे अधिक SRB दर्ज किया गया, जबकि उत्तराखंड (868) में सबसे कम। बिहार का SRB 2023 में थोड़ा सुधरकर 897 रहा, जो 2022 में 891 था। दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा में भी SRB 900 से कम दर्ज हुआ।
रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि बुजुर्ग आबादी तेजी से बढ़ रही है। 2023 में 60 वर्ष से अधिक आयु की आबादी का अनुपात 0.7 प्रतिशत अंक बढ़कर 9.7% हो गया। सबसे अधिक बुजुर्ग आबादी केरल में 15% रही, जबकि असम, दिल्ली और झारखंड ने सबसे कम बुजुर्ग अनुपात (लगभग 7.6-7.7%) दर्ज किया।
TFR आँकड़ों से स्पष्ट है कि प्रतिस्थापन स्तर से अधिक प्रजनन दर वाले राज्य उत्तर भारत में हैं—बिहार (2.8), उत्तर प्रदेश (2.6), मध्य प्रदेश (2.4), राजस्थान (2.3) और छत्तीसगढ़ (2.2)। दूसरी ओर, सबसे कम TFR दिल्ली (1.2), पश्चिम बंगाल (1.3), तमिलनाडु (1.3), महाराष्ट्र (1.4) और तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब (1.5) में दर्ज की गई।
जनसांख्यिकीय आँकड़े संकेत करते हैं कि भारत की जनसंख्या अब धीमी गति से बढ़ रही है और आने वाले समय में स्थिर या घट भी सकती है। यह जहाँ संसाधन प्रबंधन के लिहाज़ से सकारात्मक है, वहीं बुजुर्ग आबादी का दबाव, श्रमशक्ति में कमी और लिंगानुपात की असंतुलन जैसी चुनौतियाँ भी बढ़ा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार नीतियों को बदलते सामाजिक ढाँचे के अनुरूप पुनर्गठित करना होगा।