भारत-चीन संबंधों में नरमी, वांग यी की यात्रा से नए संकेत
2020 में गलवान घाटी की झड़पों के बाद बिगड़े भारत-चीन संबंधों में अब सुधार के संकेत मिल रहे हैं। ब्लूमबर्ग के अनुसार, बीजिंग ने यूरिया निर्यात पर प्रतिबंधों में ढील दी है और नई दिल्ली ने चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा बहाल कर दिया है। इसी बीच चीनी विदेश मंत्री वांग यी सोमवार को अपनी दो दिवसीय भारत यात्रा पर दिल्ली पहुंचे। उनका स्वागत विदेश मंत्रालय के पूर्वी एशिया प्रभाग के संयुक्त सचिव गौरांगलाल दास ने किया। वांग मुख्य रूप से सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधियों की अगली दौर की वार्ता के लिए भारत आए हैं।
वांग यी ने अपनी यात्रा की शुरुआत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से बातचीत से की। विदेश मंत्री एस जयशंकर से उनकी मुलाकात सोमवार को हुई, जहाँ जयशंकर ने कहा कि दोनों पक्ष द्विपक्षीय संबंधों के "कठिन दौर" के बाद आगे बढ़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए, न ही प्रतिस्पर्धा संघर्ष।" मंगलवार शाम 5.30 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वांग यी के बीच मुलाकात निर्धारित है। यह वांग की तीन साल में पहली भारत यात्रा है और इसे संबंधों में सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वैश्विक स्तर पर "एकतरफा धौंस" के बढ़ते चलन को देखते हुए बीजिंग और नई दिल्ली को बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। वांग ने यह भी कहा कि दोनों देशों को एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी या खतरे के रूप में नहीं, बल्कि साझेदार और अवसर के रूप में देखना चाहिए।
वांग यी की यात्रा ऐसे समय हो रही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में चीन यात्रा की संभावना है, जहाँ उनकी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात हो सकती है। अगर यह यात्रा होती है, तो यह सात वर्षों में मोदी की पहली चीन यात्रा होगी।
सूत्रों के अनुसार, वांग यी ने भारत की तीन प्रमुख चिंताओं—उर्वरक, दुर्लभ मृदा और सुरंग खोदने वाली मशीनों—का समाधान करने का आश्वासन दिया है। चीन के पास दुर्लभ मृदा खनिजों का सबसे बड़ा भंडार है और वह वैश्विक उत्पादन का 60 से 70 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित करता है। भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, हरित ऊर्जा और बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के लिए यह आश्वासन बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि उच्च शुद्धता वाले दुर्लभ मृदा खनिजों के लिए भारत काफी हद तक चीन पर निर्भर है।