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भारत में पहली मेड-इन-इंडिया चिप, सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में ऐतिहासिक कदम

:: Editor - Omprakash Najwani :: 03-Sep-2025
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भारत की तकनीकी यात्रा में यह सप्ताह मील का पत्थर साबित हुआ, जब सेमीकॉन इंडिया 2025 में आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की पहली मेड-इन-इंडिया व्यावसायिक चिप भेंट की। यह केवल एक उत्पाद का लोकार्पण नहीं, बल्कि भारत के प्रौद्योगिकीय आत्मसम्मान और रणनीतिक आत्मनिर्भरता का उद्घोष था।

इसरो की सेमीकंडक्टर लैब में विकसित ‘विक्रम’ 32-बिट प्रोसेसर रॉकेट प्रक्षेपण जैसी कठिन परिस्थितियों के लिए प्रमाणित किया जा चुका है। वहीं गुजरात के साणंद स्थित सीजी सेमी (CG Semi) संयंत्र में निर्मित QFP (क्वाड फ्लैट पैकेज) चिप घरेलू उपकरणों से लेकर ऑटोमोबाइल तक स्मार्ट ऑटोमेशन का आधार बनेगी। वॉशिंग मशीन नियंत्रण से लेकर कार की स्टीयरिंग प्रणाली तक में इसका इस्तेमाल संभव होगा।

7,600 करोड़ रुपये के निवेश से बनी भारत की पहली OSAT (Outsourced Semiconductor Assembly and Test) सुविधा का उद्घोष भी इसी के साथ हुआ है। जहाँ G1 फैक्ट्री रोज़ाना 5 लाख चिप्स बना रही है, वहीं नया G2 प्लांट 1.4 करोड़ यूनिट प्रतिदिन उत्पादन करने में सक्षम होगा। यह संकेत है कि भारत अब वैश्विक आपूर्ति शृंखला में उपभोक्ता नहीं, निर्माता के रूप में पहचान बनाना चाहता है।

Applied Materials, ASML, Lam Research और Merck जैसी दिग्गज कंपनियों ने भारत की पहल की सराहना की है और निवेश का भरोसा जताया है। उद्योग जगत मानता है कि भारत अब “प्रतिभा और नवाचार की प्रयोगशाला” के रूप में उभर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन सत्र में कहा, “वह दिन दूर नहीं जब भारत में बनी सबसे छोटी चिप दुनिया में सबसे बड़ा बदलाव लाएगी।”

हालाँकि चुनौतियाँ अभी भी बड़ी हैं। सेमीकंडक्टर निर्माण पूंजी-गहन, कौशल-आधारित और नीति-निर्भर उद्योग है। सरकार ने अब तक 76,000 करोड़ रुपये के मिशन में से 62,900 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। मोदी सरकार ने डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव योजना के तहत 23 डिज़ाइन परियोजनाओं को मंजूरी दी है और 1.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक के 10 सेमीकंडक्टर निर्माण प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी दी है। ये प्रोजेक्ट गुजरात, असम, उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में लगाए जा रहे हैं।

भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में पहला ऐतिहासिक कदम रख दिया है। अब असली चुनौती यह है कि क्या देश निरंतर नवाचार, निवेश और नीति के त्रिकोण से टिकाऊ वैश्विक नेतृत्व हासिल कर पाएगा।


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