MUDA घोटाले में सिद्धारमैया और परिवार को क्लीन चिट, आयोग की रिपोर्ट कैबिनेट ने स्वीकार की
कर्नाटक के मंत्री एचके पाटिल ने गुरुवार को कहा कि कथित MUDA घोटाले की जांच कर रहे न्यायिक आयोग के अध्यक्ष पीएन देसाई ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके परिवार को क्लीन चिट दे दी है। सेवानिवृत्त न्यायाधीश पीएन देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) स्थल आवंटन मामले में मुख्यमंत्री और उनके परिवार को निर्दोष बताया। कर्नाटक मंत्रिमंडल ने गुरुवार को आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर ली, जिसमें अनियमितताओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की भी सिफारिश की गई है।
देसाई आयोग ने उन आरोपों की जांच की थी कि सिद्धारमैया का परिवार 2020 और 2024 के बीच मैसूर में "अवैध वैकल्पिक स्थल आवंटन घोटाले" में शामिल था। आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि मुआवजे के रूप में स्थलों का आवंटन अवैध नहीं कहा जा सकता। पीएन देसाई आयोग ने 31 जुलाई को मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को रिपोर्ट सौंपी थी।
कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री एचके पाटिल ने बताया कि रिपोर्ट में साफ किया गया है कि मुख्यमंत्री और उनके परिवार के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने कहा कि कैबिनेट ने आयोग की रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। इससे पहले लोकायुक्त पुलिस ने भी सिद्धारमैया, उनकी पत्नी पार्वती और दो अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में क्लीन चिट दी थी।
इस बीच, न्यायमूर्ति एचएन नागमोहन दास आयोग की एक रिपोर्ट को भी मंत्रिमंडल के समक्ष रखा गया। इस आयोग ने 2019-20 से 2022-23 के बीच बृहद बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के कार्यों में कथित विसंगतियों की जांच की थी। उस समय राज्य में भाजपा की सरकार थी।
कैबिनेट ने किसानों, छात्रों और कन्नड़ कार्यकर्ताओं से जुड़े 60 पुलिस मामलों को वापस लेने का भी फैसला किया। इसके अलावा बेंगलुरु मेट्रो रेल परियोजना के तीसरे चरण के दो कॉरिडोर के साथ 37.121 किलोमीटर लंबे रोड निर्माण को मंजूरी दी गई। कैबिनेट ने कोप्पल, बादामी में कांग्रेस भवन ट्रस्ट को भूमि पट्टे पर देने और कर्नाटक प्रबंधन नियम, ई-साक्ष्य 2025 को अधिसूचित करने की भी स्वीकृति दी।
MUDA स्थल आवंटन विवाद में आरोप था कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को मैसूर के विजयनगर लेआउट के तीसरे और चौथे चरण में 14 प्रतिपूरक भूखंड आवंटित किए गए, जिनका मूल्य उनकी अधिग्रहित भूमि की तुलना में अधिक था। यह आवंटन 50:50 अनुपात योजना के तहत हुआ था, लेकिन लोकायुक्त पुलिस और अब देसाई आयोग दोनों ने ही सिद्धारमैया और उनके परिवार को आरोपों से मुक्त कर दिया है।