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भारतीय नौसेना में शामिल हुए आईएनएस उदयगिरि और हिमगिरि, स्टील्थ फ्रिगेट्स से बढ़ी समुद्री ताकत

:: Editor - Omprakash Najwani :: 26-Aug-2025
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विशाखापत्तनम। भारतीय नौसेना ने मंगलवार, 26 अगस्त को एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की जब पूर्वी नौसेना कमान में दो अत्याधुनिक स्टील्थ फ्रिगेट—आईएनएस उदयगिरि (F35) और आईएनएस हिमगिरि (F34)—को एक साथ नौसेना में शामिल किया गया। इस समारोह की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की। यह पहली बार है जब अलग-अलग शिपयार्ड से तैयार किए गए दो फ्रंटलाइन सतही युद्धपोत एक ही समय पर नौसेना को सौंपे गए हैं।

ये दोनों जहाज प्रोजेक्ट 17 (पी-17) की शिवालिक-श्रेणी के फ्रिगेट्स के उत्तराधिकारी हैं और प्रोजेक्ट 17ए के अंतर्गत बनाए गए हैं। इससे पहले इसी परियोजना का पहला युद्धपोत आईएनएस नीलगिरि इस वर्ष की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में जलावतरण किया गया था।

आईएनएस उदयगिरि मुंबई स्थित मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड द्वारा निर्मित है और यह नौसेना के युद्धपोत डिज़ाइन ब्यूरो का 100वाँ पोत है। इसका विस्थापन लगभग 6,700 टन है और इसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलें, बराक-8 मिसाइलें, 76 मिमी तोप, क्लोज-इन वेपन सिस्टम और पनडुब्बी रोधी हथियार लगे हैं। लगभग 75 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री से निर्मित इस युद्धपोत में 200 से अधिक एमएसएमई का योगदान है, जिससे 4,000 प्रत्यक्ष और 10,000 अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजित हुए।

आईएनएस हिमगिरि कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स द्वारा बनाया गया है। इसका विस्थापन लगभग 6,670 टन है और इसमें ब्रह्मोस मिसाइलें, बराक-8 वायु रक्षा प्रणाली, टॉरपीडो ट्यूब और पनडुब्बी रोधी रॉकेट लॉन्चर शामिल हैं। इसमें हेलीकॉप्टर संचालन की भी क्षमता है, जिसमें MH-60 रोमियो, ALH ध्रुव Mk-III और सी किंग हेलीकॉप्टर तैनात किए जा सकते हैं।

दोनों जहाज अपने पूर्ववर्ती लिएंडर-श्रेणी के युद्धपोतों के नाम पर रखे गए हैं, जिन्होंने दशकों तक भारतीय नौसेना की सेवा की थी। इनका डिज़ाइन उन्नत स्टील्थ तकनीक पर आधारित है जो रडार, इन्फ्रारेड और ध्वनिक संकेतों को कम कर दुश्मन के सेंसर से बचने में मदद करता है।

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि इन बहु-भूमिका वाले स्टील्थ फ्रिगेट्स के शामिल होने से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की नौसैनिक ताकत और बढ़ेगी। ये युद्धपोत वायु-रोधी, सतह-रोधी और पनडुब्बी-रोधी अभियानों में निर्णायक भूमिका निभाएंगे और नौसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होंगे।


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