भागवत बोले – भारत में सक्रिय ताकतों से सतर्क रहना होगा, लोकतांत्रिक तरीकों से ही संभव है परिवर्तन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी भाषण में पड़ोसी देशों में बढ़ती उथल-पुथल पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में जनाक्रोश के कारण हुए सत्ता परिवर्तन भारत के लिए चेतावनी हैं। भागवत ने आगाह किया कि भारत में भी देश के भीतर और बाहर ऐसी ताकतें सक्रिय हैं। उन्होंने जोर दिया कि समाज में परिवर्तन केवल लोकतांत्रिक तरीकों से ही संभव है, अन्यथा वैश्विक शक्तियाँ इसका लाभ उठाने की कोशिश करेंगी।
भागवत ने कहा कि पड़ोसी देश भारत से सांस्कृतिक और नागरिकों के बीच लंबे संबंधों से जुड़े हैं, इसलिए उनमें शांति, स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करना भारत की स्वाभाविक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि असंतोष के मूल कारण सरकार और समाज के बीच दूरी और जनोन्मुखी प्रशासकों का अभाव है।
नक्सलवाद पर उन्होंने कहा कि सरकार के दृढ़ कदमों और लोगों की जागरूकता से आंदोलन काफी हद तक नियंत्रित हुआ है, लेकिन प्रभावित क्षेत्रों में न्याय, विकास, सद्भाव और सहानुभूति सुनिश्चित करने के लिए व्यापक कार्य योजना की ज़रूरत है।
भागवत ने वैज्ञानिक प्रगति और वैश्विक अंतर्संबंधों से उत्पन्न चुनौतियों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि तकनीकी और वैज्ञानिक विकास की रफ्तार के साथ मानवीय अनुकूलन की गति धीमी है, जिसके चलते पर्यावरणीय क्षति, सामाजिक और पारिवारिक बंधनों का कमज़ोर होना तथा बढ़ती शत्रुता जैसी समस्याएँ सामने आ रही हैं। उन्होंने चेताया कि विकृत और शत्रुतापूर्ण शक्तियाँ संस्कृति, आस्था और परंपरा के विनाश के जरिए समस्याओं को और बढ़ा रही हैं।
भागवत ने कहा कि दुनिया भारतीय दर्शन पर आधारित समाधानों की प्रतीक्षा कर रही है और भारत को इस दिशा में नेतृत्व करना होगा।
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