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भारत–ऑस्ट्रेलिया रक्षा साझेदारी गहरी, राजनाथ सिंह की सिडनी यात्रा में महत्वपूर्ण समझौते

:: Editor - Omprakash Najwani :: 06-Oct-2025
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नई दिल्ली। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा संबंध पिछले दशक में तीव्र गति से विकसित हुए हैं और अब यह सहयोग केवल सेनाओं के स्तर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि रक्षा-औद्योगिक और सामरिक क्षेत्रों में भी नई संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सिडनी यात्रा (9–10 अक्टूबर) के दौरान तीन महत्वपूर्ण करारों पर हस्ताक्षर होने की संभावना है, जिनमें सूचना-साझेदारी, समुद्री सुरक्षा और संयुक्त सैन्य गतिविधियाँ शामिल हैं। यह पहल दोनों देशों की “समग्र रणनीतिक साझेदारी” की पांचवीं वर्षगांठ पर रणनीतिक महत्व रखती है।

इस यात्रा की विशेषता यह है कि 2014 के बाद यह किसी भारतीय रक्षा मंत्री की पहली आधिकारिक ऑस्ट्रेलिया यात्रा है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामक गतिविधियों के बीच यह सहयोग सुरक्षा के व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ में देखा जा रहा है। भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों “मुक्त और खुला इंडो-पैसिफिक” सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और यह साझेदारी नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने की दिशा में ठोस प्रयास है।

आगामी “ऑस्ट्राहिंद 2025” युद्धाभ्यास (13–26 अक्टूबर, पर्थ) दोनों सेनाओं की कंपनी-स्तरीय ऑपरेशनल क्षमता बढ़ाने और शांति अभियानों में सहयोग सुदृढ़ करने के लिए आयोजित होगा। इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया नियमित रूप से “मालाबार” नौसैनिक अभ्यास में हिस्सा लेता है, जिसमें अमेरिका, जापान और भारत शामिल हैं। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामूहिक सामरिक एकजुटता का प्रतीक है।

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहले से मौजूद सैन्य लॉजिस्टिक्स समझौते के तहत दोनों देशों के युद्धपोत और विमान एक-दूसरे के ठिकानों पर रीफ्यूलिंग, मरम्मत और डॉकिंग सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं। यह भारत की “विस्तृत समुद्री उपस्थिति” नीति का हिस्सा है और दक्षिणी प्रशांत तक भारत की स्ट्रैटेजिक रीच बढ़ाने में सहायक है।

जून में हुई पिछली द्विपक्षीय बैठक में दोनों पक्षों ने रक्षा-औद्योगिक सहयोग को गहन करने का संकल्प लिया था। भारत की बढ़ती शिपबिल्डिंग, मिसाइल सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर तकनीक के साथ ऑस्ट्रेलियाई विशेषज्ञता का मेल दोनों देशों के लिए पारस्परिक लाभदायक साबित हो सकता है।

बहरहाल, राजनाथ सिंह की यात्रा और प्रस्तावित रक्षा करार इस बात का संकेत हैं कि भारत वैश्विक मंच पर केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने वाला रणनीतिक निर्णायक बन रहा है।


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