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भारत में नारी चेतना के आगे झुका तालिबान: महिला पत्रकारों के दबाव में करनी पड़ी दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस

:: Editor - Omprakash Najwani :: 13-Oct-2025
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नई दिल्ली। 10 अक्तूबर को अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताक़ी की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस पूरी तरह ‘ओनली जेंट्स’ आयोजन बन गई थी, जिसमें न कोई महिला पत्रकार थी, न कोई महिला प्रतिनिधि। जैसे ही तस्वीरें सामने आईं, भारत में मीडिया जगत और राजनीतिक वर्ग में भारी आलोचना शुरू हो गई। Editors Guild of India और Indian Women’s Press Corps (IWPC) ने इसे “उच्चस्तरीय भेदभाव” करार देते हुए कहा कि वियना कन्वेंशन या कूटनीतिक छूट के नाम पर लिंगभेद का कोई औचित्य स्वीकार्य नहीं।

महिला पत्रकारों, विपक्षी नेताओं और नागरिक समाज की तीखी प्रतिक्रिया के बाद विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि वह तालिबान की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजक नहीं था। बावजूद इसके मामला शांत नहीं हुआ। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, महुआ मोइत्रा और जयराम रमेश जैसे नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की “नारी सशक्तिकरण” नीति पर सवाल उठाए।

लगातार आलोचना और दबाव के बीच तालिबान को दूसरे ही दिन नई प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करनी पड़ी, जिसमें महिला पत्रकारों को आमंत्रित किया गया। इस दौरान मुत्ताक़ी ने सफाई दी कि पिछली बार यह “जानबूझकर नहीं” बल्कि “तकनीकी त्रुटि” थी और “समय की कमी” के कारण कुछ पत्रकारों को ही बुलाया गया था।

यह घटना केवल मीडिया नैतिकता या महिला अधिकारों का प्रश्न नहीं, बल्कि कूटनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। भारत में महिलाओं का लोकतांत्रिक प्रभाव और प्रेस की स्वतंत्रता इतनी मजबूत है कि तालिबान जैसी सत्ता भी अपने पुराने तौर-तरीके यहां लागू नहीं कर सकती। मुत्ताक़ी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि “शिक्षा हराम नहीं है” और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में महिलाएँ पढ़ रही हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टें अफगान महिलाओं पर “व्यवस्थित उत्पीड़न” की पुष्टि करती हैं।

मुत्ताक़ी की यह “समावेशी” प्रेस कॉन्फ्रेंस भारत की नीतिगत जीत के साथ-साथ भारतीय महिलाओं की नैतिक विजय भी साबित हुई। जिस तालिबान ने काबुल में महिलाओं के चेहरों पर नकाब और सपनों पर ताले लगाए हैं, उसी के प्रतिनिधि को दिल्ली में महिला पत्रकारों के प्रश्नों का सामना करना पड़ा। यह दृश्य भारत की विशिष्ट पहचान— “लोकतंत्र, संवाद और समानता की भूमि”—को और सुदृढ़ करता है।

भारत की मीडिया और नारी चेतना ने मिलकर यह संदेश दिया है कि इस देश में नारी की आवाज़ को दबाना संभव नहीं।


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