अमेरिकी टैरिफ बढ़ाने की धमकी से भारत के दवा और तांबा निर्यात पर असर संभव, पर आशंका अब भी संशय में
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डोनाल्ड ट्रंप अब तक शुल्क को लेकर अपने बयान बार-बार बदलते रहे हैं। वह कभी नए शुल्क का एलान करते हैं, तो अगले ही दिन उसे टाल देने की बात भी कहने लगते हैं। उनकी उलझन वाजिब भी दिखती है। दरअसल, उन्होंने पद संभालने के साथ ही सख्त शुल्क नीति लाने का एलान किया था। उनका मानना था कि ऐसा कहने से तमाम देश अमेरिका के साथ नया समझौता करने को बाध्य होंगे, पर ऐसा नहीं हुआ।
भारत के साथ संभावित व्यापार समझौते की खबरों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से टैरिफ (सीमा शुल्क) बढ़ाने की धमकी दी है। स्टील और एल्युमीनियम के बाद उन्होंने तांबे पर 50%, साथ ही अगले साल से आयातित दवाओं पर 200% तक शुल्क-वृद्धि की चेतावनी दी है। बेशक, ऐसे बयानों पर अभी स्पष्टता आनी शेष है, लेकिन सीमा शुल्क में यदि इस तरह की बढ़ोतरी होती है, तो भारत पर भी इसका कुछ हद तक असर पड़ सकता है, खासकर दवा उद्योग पर।
दरअसल, भारत का सबसे बड़ा दवा बाजार अमेरिका ही है। वित्त वर्ष 2025 में उसने 9.8 अरब डॉलर की दवाइयां मंगवाई थी, जो पिछले साल के मुकाबले 21 फीसद ज्यादा थी। भारत जितनी दवाइयां दूसरे देशों को बेचता है, उसका 40 फीसदी हिस्सा अमेरिकी बाजार को जाता है। इनमें भी जेनेरिक दवाइयों की मात्रा काफी ज्यादा 45 फीसद तक होती है। ऐसे में, सीमा शुल्क बढ़ाने से अमेरिकी बाजार में भारतीय दवाइयां महंगी हो सकती हैं, जिससे उनकी मांग भी प्रभावित होगी।
रही बात तांबे की, तो साल 2024-25 में भारत ने वैश्विक स्तर पर दो अरब डॉलर मूल्य का तांबा और तांबे से बने उत्पादों का निर्यात किया था, जिनमें से 36 करोड़ डॉलर मूल्य का, यानी 17 फीसदी निर्यात अमेरिकी बाजारों को किया गया था।
तांबा निर्यात: अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा बाजार
आंकड़ों की मानें, तो तांबा निर्यात के लिहाज से अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। भारत से ज्यादा तांबा सऊदी अरब (26 फीसद) और चीन (18 फीसद) अमेरिका भेजते हैं। मगर अच्छी बात यह है कि तांबे की गिनती काफी महत्त्वपूर्ण खनिजों में होती है और इसका ऊर्जा, विनिर्माण व बुनियादी ढांचे सहित तमाम क्षेत्रों में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। नए शुल्क के बाद यदि अमेरिकी बाजार में इसकी मांग घटती भी है, तो घरेलू उद्योग से उसकी भरपाई की जा सकेगी।
लिहाजा, ट्रंप यदि अपनी धमकी को अमल में लाते हैं, तब भी हमें कुछ हद तक ही परेशानी होगी। मगर मूल सवाल तो यह है कि क्या वह ऐसा करेंगे?
दो कदम आगे बढ़ते हैं और एक कदम पीछे हट जाते हैं ट्रंप
दरअसल, ट्रंप अब तक शुल्क को लेकर अपने बयान बार-बार बदलते रहे हैं। वह कभी नए शुल्क का एलान करते हैं, तो अगले ही दिन उसे टाल देने की बात भी कहने लगते हैं। इससे लगता है कि वह दो कदम आगे बढ़ते हैं और एक कदम पीछे हट जाते हैं। उनकी उलझन वाजिब भी दिखती है।
असल में, उन्होंने पद संभालने के साथ ही सख्त शुल्क नीति लाने का एलान किया था। उनका मानना था कि ऐसा कहने से तमाम देश अमेरिका के साथ नया समझौता करने को बाध्य होंगे और वाशिंगटन को अपने व्यापार-घाटा से पार पाने में मदद मिलेगी। उस वक्त उन्होंने 90 दिनों में 90 समझौते करने की उम्मीद जताई थी। मगर ऐसा हो नहीं सका। अब तक बमुश्किल दो-तीन समझौते ही वह कर सके हैं, वे भी पूरी तरह से लागू नहीं हो सके हैं। मसलन, ब्रिटेन व वियतनाम के साथ उन्होंने संधि का एलान किया, जबकि चीन के साथ सीमित प्रावधानों पर सहमति बन सकी है।
जाहिर है, ट्रंप अपनी नीतियों पर मनमर्जी आगे नहीं बढ़ सके हैं। उनकी यह सोच साकार होती नजर नहीं आ रही कि सख्त शुल्क नीति के जवाब में अन्य देश अमेरिका के आगे झुकने को मजबूर होंगे।