अमेरिकी कंपनियों के बहिष्कार की मांग तेज, ‘स्वदेशी अपनाओ’ पर जोर
वाराणसी, 11 अगस्त। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए एक बार फिर स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अब हम उन वस्तुओं को खरीदेंगे, जिसे बनाने में किसी न किसी भारतीय का पसीना बहा है।
अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने के बाद देश में कई व्यावसायिक संगठनों और जनता की ओर से अमेरिकी कंपनियों के बहिष्कार की मांग तेज हो गई है। यह माहौल न केवल सोशल मीडिया पर बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी दिख रहा है। संघ परिवार से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने देश के विभिन्न हिस्सों में कार्यक्रम आयोजित कर लोगों से अमेरिकी ब्रांडों का बहिष्कार करने की अपील की है और एक सूची साझा की है जिसमें विदेशी साबुन, टूथपेस्ट और सॉफ्ट ड्रिंक्स के स्थान पर भारतीय विकल्प बताए गए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि त्योहारी सीज़न में यह आह्वान अमेरिकी कंपनियों के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि दिवाली, दशहरा, नवरात्र जैसे पर्वों के दौरान उपभोक्ता ख़रीदारी कई गुना बढ़ जाती है। इस अवधि में यदि उपभोक्ताओं में ‘लोकल अपनाओ’ और ‘स्वदेशी’ की भावना सक्रिय हो जाती है तो फास्ट-फूड, शीतल पेय, प्रीमियम इलेक्ट्रॉनिक्स और ब्रांडेड वस्तुओं की बिक्री प्रभावित हो सकती है।
हालांकि, भारत में अमेरिकी ब्रांडों का मजबूत ग्राहक-आधार और सुविधाजनक पहुंच होने से अचानक बिक्री ठप पड़ना मुश्किल है, लेकिन एक संगठित और भावनात्मक बहिष्कार अभियान उनकी वृद्धि-गति को धीमा कर सकता है। इस बीच, अमेरिकी कंपनी टेस्ला ने मुंबई के बाद नई दिल्ली में अपना शोरूम खोला, जिसमें भारतीय वाणिज्य मंत्रालय और अमेरिकी दूतावास के अधिकारी भी मौजूद रहे।
विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला महज़ व्यापारिक नहीं, बल्कि आर्थिक राष्ट्रवाद, उपभोक्ता मनोविज्ञान और भू-राजनीतिक समीकरणों का मिश्रण है। लंबी अवधि में यदि यह प्रवृत्ति संगठित रूप लेती है तो अमेरिकी कंपनियों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है, वहीं घरेलू कंपनियां गुणवत्ता और नवाचार में सुधार कर ‘Made in India’ को प्रतिस्पर्धी शक्ति में बदल सकती हैं।
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