देश में छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि कैंपस में ‘कुछ तो गड़बड़’ है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। कोर्ट ने आत्महत्या रोकथाम के लिए देशभर के शिक्षण संस्थानों में लागू करने हेतु 15 सख्त गाइडलाइंस जारी की हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2022 में कुल 1,70,924 आत्महत्याओं में से 13,044 छात्र थे। वर्ष 2001 में यह आंकड़ा 5,425 था। आंकड़ों के अनुसार, 100 आत्महत्याओं में औसतन 8 छात्र शामिल होते हैं। केवल परीक्षा में असफल होने के कारण 2,248 छात्रों ने जान दे दी।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने यह फैसला 17 वर्षीय नीट की तैयारी कर रही छात्रा की मौत के मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया। कोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच का आदेश भी दिया है। इससे पहले आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि देश में आत्महत्या की रोकथाम के लिए कोई माकूल कानून नहीं है। ऐसे में जब तक संसद इस दिशा में कानून नहीं बनाती, तब तक कोर्ट की गाइडलाइंस ही बाध्यकारी होंगी। ये गाइडलाइंस सभी सरकारी, निजी, पब्लिक स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, प्रशिक्षण व कोचिंग संस्थानों और हॉस्टलों पर लागू होंगी, चाहे वे किसी भी बोर्ड या विश्वविद्यालय से संबद्ध हों।
इससे पहले आईआईटी खड़गपुर में अंडरग्रैजुएट छात्र की आत्महत्या और शादरा यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा में बीडीएस छात्रा ज्योति शर्मा की आत्महत्या ने भी पूरे देश को झकझोर दिया था। इन मामलों में छात्रों ने संस्थानों के स्टाफ और फैकल्टी को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
कोर्ट ने इस दिशा में मानसिक स्वास्थ्य, उत्पीड़न रोकथाम, काउंसलिंग और हॉस्टल सुरक्षा को अनिवार्य बनाने की बात कही है, ताकि छात्रों की जान बचाई जा सके और माता-पिता की उम्मीदें टूटने से रोकी जा सकें।