जल जीवन मिशन में 10 हजार करोड़ के भ्रष्टाचार का आरोप, सरकार ने किया खंडन
भोपाल। मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत 10 हजार करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने लगाया है। शनिवार को कांग्रेस कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कटारे ने कहा कि अगर अधिकारियों की कॉल डिटेल निकाली जाए और सीबीआई जांच कराई जाए तो असली सच्चाई सामने आ सकती है।
कटारे ने कहा कि भ्रष्टाचार की मंशा से पूरे प्रदेश में 27 हजार ट्यूबवेल आधारित योजनाएं बनाई गईं और कई तकनीकी विकल्पों की अनदेखी की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि इन योजनाओं में मेंटेनेंस का कोई प्रावधान नहीं किया गया और सभी जिलों को केवल एक मॉडल डीपीआर के प्रारूप में आंकड़े भरकर भेजने के निर्देश दिए गए। गूगल डेटा के आधार पर तैयार की गई इन डीपीआर के लिए कंसल्टेंट को प्रति डीपीआर 10 हजार रुपये का भुगतान किया गया, जिससे बाद में बड़े बदलाव की नौबत आई।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नोडल अधिकारी के मौखिक निर्देश पर सिल्वर आयोनाइजर जैसे यंत्रों की खरीदी की गई, जिसकी बाजार कीमत मात्र चार हजार रुपये है लेकिन इन्हें 70 हजार से एक लाख रुपये में खरीदा गया। आईआईटी चेन्नई की रिपोर्ट के अनुसार इन यंत्रों की कोई उपयोगिता नहीं थी। कटारे ने यह भी दावा किया कि पुरानी पाइप लाइनों को नए बिलों में दिखाकर राशि आहरित की गई और सीपेट की रिपोर्ट में यह खुलासा हो चुका है। साथ ही, पुराने टेंडरों को संशोधित कर टेंडर दरों में 265 प्रतिशत तक की वृद्धि की गई, जिससे राज्य सरकार को 2750 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े।
हालांकि, राज्य शासन ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों ने मीडिया को जारी बयान में कहा कि योजना में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है और सभी कार्य भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार हुए हैं। अधिकारियों के अनुसार, केंद्र सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा मॉडल डीपीआर का प्रारूप भेजा गया था, जिससे सभी तकनीकी पहलुओं का समावेश सुनिश्चित किया गया।
विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि मेंटेनेंस का प्रावधान केंद्र सरकार की नीति के अनुसार ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी है। पुनरीक्षित योजनाओं के लिए मुख्य अभियंताओं की अध्यक्षता में समितियां गठित की गई थीं, जिनकी अनुशंसा पर ही राशि में वृद्धि हुई। सिल्वर आयोनाइजर की खरीदी भी राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, नागपुर के परीक्षण और तकनीकी समिति के अनुमोदन के बाद ही की गई, और ये यंत्र बेहतर तरीके से कार्य कर रहे हैं।
विभाग का दावा है कि घरेलू नल कनेक्शन की संख्या 13 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत से अधिक हो गई है। साथ ही, भारत सरकार द्वारा नियुक्त संस्था इप्सोस द्वारा किए गए रैंडम सर्वेक्षण में 1300 ग्रामों में से 95 प्रतिशत में नल कनेक्शन पाए गए हैं। वहीं, पाइपलाइन बिछाने के बाद भुगतान केवल स्वतंत्र संस्था टीपीआई के मूल्यांकन के बाद ही किया गया है।
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