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बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर सियासी संग्राम, चुनाव आयोग ने विपक्ष को दिया दो-टूक जवाब

:: Editor - Omprakash Najwani :: 24-Jul-2025
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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का मुद्दा अब राष्ट्रीय राजनीतिक बहस का विषय बन चुका है। विपक्षी दलों के सांसद इसे लेकर संसद के भीतर और बाहर जोरदार विरोध जता रहे हैं। वहीं, अब चुनाव आयोग ने इस विवाद पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए आलोचकों को सख्त लहजे में जवाब दिया है।

चुनाव आयोग ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि भारत का संविधान भारतीय लोकतंत्र की जननी है और आयोग इसी संविधान के तहत कार्य करता है। आयोग ने सवाल किया कि क्या आलोचना के डर से वह अपने कर्तव्यों से पीछे हट जाए? आयोग ने यह भी पूछा कि क्या उसे स्थायी रूप से पलायन कर चुके वोटरों, दोहरी मतदान करने वालों या फर्जी मतदाताओं को वोट देने देना चाहिए?

आयोग ने आगे कहा कि क्या उसे विदेशी नागरिकों के नाम पर भी फर्जी वोट डालने की अनुमति देनी चाहिए? क्या यह सब भारत में निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र के सिद्धांतों को खतरे में नहीं डालेगा? चुनाव आयोग ने जोर दिया कि यह प्रक्रिया ही निष्पक्ष चुनावों की नींव है और समय आ गया है कि राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर सभी नागरिक इस पर गहराई से चिंतन करें।

वहीं, इस पूरे मामले पर शिवसेना यूबीटी की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सवाल उठाते हुए कहा कि SIR की प्रक्रिया ने वोटरों को आश्वस्त करने के बजाय और ज्यादा भ्रमित कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि बार-बार ऐसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं जो कई परिवारों के पास नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के सुझावों के बावजूद चुनाव आयोग ने वैकल्पिक दस्तावेजों को मान्यता नहीं दी है।

प्रियंका चतुर्वेदी ने यह भी कहा कि जो समय-सीमा तय की गई है और जिन वोटरों के नाम लिस्ट से बाहर किए जा सकते हैं, उसे लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। उन्होंने पूछा कि लोकसभा चुनावों के दौरान इन वोटर्स के साथ क्या हुआ और क्या उनका दुरुपयोग किया गया?

तेजस्वी यादव द्वारा उठाए गए सवालों को पूरी तरह जायज बताते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया भाजपा के इशारे पर चलाई जा रही है और शिवसेना यूबीटी इसका पुरजोर विरोध करती है।

इधर, एनडीए के भीतर भी वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर असमंजस की स्थिति है। विरोधी दल जहां इसे मतदाता अधिकारों का हनन बता रहे हैं, वहीं सरकार के सहयोगी दल भी इस प्रक्रिया को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाने से नहीं चूक रहे हैं। इससे साफ है कि बिहार की राजनीति आने वाले समय में और गर्माने वाली है।


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