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धनखड़ का इस्तीफा चौंकाने वाला, उपराष्ट्रपति पद को दी नई पहचान

:: Editor - Omprakash Najwani :: 22-Jul-2025
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जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। अचानक लिया गया यह फैसला कई को हैरान कर गया। जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी, जिसकी चर्चा राजनीतिक गलियारों तक में नहीं चल रही थी, वो फैसला धनखड़ ने सोमवार देर रात लिया। कारण उन्होंने स्वास्थ्य बताया, लेकिन नेताओं के बयान बता रहे हैं कि वजह से सियासी भी हो सकती है। अब असल कारण या सियासी कारण तो आने वाले दिनों में साफ होगा, इस समय हर कोई जगदीप धनखड़ के कार्यकाल को याद कर रहा है।

देश में जब भी उपराष्ट्रपति की बात होती है, उनके पास संवैधानिक अधिकार तो होते हैं, लेकिन कभी ज्यादा चर्चा नहीं की जाती। कितने उपराष्ट्रपति आए, कितने उपराष्ट्रपति गए, लेकिन ऐसा नहीं देखने को मिलता कि उनके कार्यकाल को उस तरह से याद रखा जाए। इसका बड़ा कारण यह होता है कि उपराष्ट्रपति ज्यादा सक्रिय दिखाई नहीं देते, वे खुलकर अपने विचार नहीं रखते। लेकिन इसी मामले में जगदीप धनखड़ दूसरे कई उपराष्ट्रपतियों से एकदम अलग दिखाई दिए।

जगदीप धनखड़ जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बनाए गए थे, उनके तेवर साफ दिख चुके थे। उन्होंने उस समय भी साबित कर दिया था कि राज्यपाल भी मायने रखता है, उनकी सक्रियता के बिना भी कुछ नहीं हो सकता। अब विवाद हुए, तकरार हुई, लेकिन जगदीप धनखड़ जबरदस्त लोकप्रियता और सुर्खियां बंटोरते रहे। इसी वजह से जब बाद में जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद के लिए आगे किया गया, साफ समझ आ चुका था कि अब यह पद भी खूब सुर्खियां बंटोरने वाला है।

ऐसा हुआ भी और जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति की कुर्सी संभालते ही अलग ही तेवर दिखाए। उन्होंने राह ऐसी पकड़ी जो किसी दूसरे उपराष्ट्रपति ने नहीं पकड़ी थी। उन्होंने खुलकर अपने विचार रखे, बिना हिचके किसी एक पक्ष का समर्थन किया, जरूरत पड़ने पर सरकार तक को आईना दिखाया। शायद ही कोई दिन रहा जब जगदीप धनखड़ का बयान ना आया हो, उनकी खबर ना बनी हो। यह बताने के लिए काफी रहा कि जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है।

विवादों और सुर्खियों में रहे ये बयान:

  • सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी (2023): संसद के बनाए कानूनों को अगर अदालत रोकने का काम करेंगी तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगा। विपक्ष ने इसे न्यायपालिका के काम में हस्तक्षेप बताया।

  • छात्र राजनीति पर बयान (मार्च 2023): कुछ विश्वविद्यालय देशविरोधी विचारधाराओं के शरणस्थली बन चुके हैं। इस पर लेफ्ट और अन्य संगठनों ने विरोध दर्ज कराया।

  • संसद बहिष्कार पर टिप्पणी (मई 2024): कुछ लोग लोकतंत्र को खत्म करना चाहते हैं, ऐसे लोगों को संसद नहीं, देशद्रोहियों के कटघरे में होना चाहिए।

  • सीबीआई और ईडी का समर्थन (अक्टूबर 2024): जो भी सीबीआई और ईडी पर सवाल उठाता है, वो भारत के न्यायिक तंत्र को कमजोर कर रहा है।

  • किसान आंदोलन पर तीखा सवाल: सरकार से पूछा कि यदि वादा किया है तो उसे पूरा भी करना चाहिए, किसान संकट में हैं।

जगदीप धनखड़ के कार्यकाल ने यह साबित कर दिया कि उपराष्ट्रपति का पद केवल औपचारिकता तक सीमित नहीं, वह सक्रियता और स्पष्ट विचारधारा से भी देश की राजनीति में अहम प्रभाव छोड़ सकता है।



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