चुनाव आयोग का बड़ा फैसला: आधार, राशन कार्ड और वोटर ID को नहीं माना जाएगा नागरिकता का प्रमाण
बिहार में जैसे-जैसे 25 जुलाई की तारीख नजदीक आ रही है, वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) का काम भी रफ्तार पकड़ रहा है। इस बीच, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल कर साफ कर दिया है कि आधार, राशन कार्ड और वोटर ID कार्ड को नागरिकता प्रमाण के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। आयोग के इस रुख से सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है।
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा है कि राज्य के 7.8 करोड़ मतदाताओं को एक फॉर्म भरना होगा और जरूरी दस्तावेज जमा करने होंगे, तभी वे आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकेंगे। आयोग ने स्पष्ट किया है कि वोट डालने के लिए 11 में से किसी एक दस्तावेज का होना जरूरी होगा, लेकिन इनमें आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड शामिल नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई थी, और पिछली सुनवाई में कोर्ट ने आयोग से पूछा था कि क्या इन दस्तावेजों को भी मान्यता दी जा सकती है। जवाब में आयोग ने कहा कि आधार कार्ड को नागरिकता प्रमाण नहीं माना जा सकता, और कई हाईकोर्ट भी यही कह चुकी हैं। राशन कार्ड को लेकर आयोग ने कहा कि बड़ी संख्या में यह फर्जी पाए गए हैं और केंद्र सरकार पहले ही 5 करोड़ से ज्यादा फर्जी राशन कार्ड रद्द कर चुकी है। वहीं, वोटर ID कार्ड को लेकर आयोग का कहना है कि यह पहचान पत्र है, लेकिन यह नागरिकता सिद्ध नहीं करता।
आयोग ने दोहराया कि दस्तावेजों की जांच और स्वीकृति का अधिकार Electoral Registration Officers (ERO) के पास रहेगा। उल्लेखनीय है कि बिहार में इससे पहले मतदाता सूची का पुनरीक्षण जनवरी 2003 में किया गया था।
इस पूरे मसले को लेकर विपक्ष हमलावर है। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और ममता बनर्जी ने खुलकर चुनाव आयोग के कदम की आलोचना की है। ममता बनर्जी ने तो यहां तक कहा कि यह "बैकडोर से NRC लागू करने की कोशिश" है। हालांकि चुनाव आयोग ने साफ किया है कि यह प्रक्रिया पूरे देश में लागू होगी और बिहार से इसकी शुरुआत हुई है।
आयोग ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि वोटर लिस्ट के रिवीजन के दौरान किसी की नागरिकता समाप्त नहीं की जाएगी, लेकिन दस्तावेजों के अभाव में वोट डालने के लिए अयोग्य जरूर ठहराया जा सकता है। आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 और 326 का हवाला देते हुए कहा कि उसे मतदाता सूची और मतदाता की पात्रता तय करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी और बिहार के राजनीतिक दलों की नजरें इस पर टिकी हुई हैं, क्योंकि राज्य में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
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